Taro Root Farming: अरबी की खेती भी बन सकती है पैसों का खजाना, एक हेक्टेयर में पैदा हो जाती है 20 टन अरबी, कुछ ही समय में कमा सकते है लाखों हरदोई जिले के बड़े क्षेत्रफल में अरबी की खेती की जाती है। किसान रवींद्र नाथ बताते हैं कि 52 क्षेत्रों में बड़ी संख्या में किसान नहर के किनारे अरबी की खेती कर रहे हैं।अरबी के बीज की बुवाई मार्च में की जाती है।
इसे कतार विधि से लगाया जाता है। अन्य फसलों की अपेक्षा इससे काफी अच्छा मुनाफा होता है। लगभग 4 दिन के अंतराल में अरबी की सिंचाई की जाती है। अरबी की फसल मोटा मुनाफा कमाने में काफी सार्थक है ,उत्तरप्रदेश में अरबी की फसल ने कई किसानो की झोली पैसे से भर दी है।
किसानों में जगी अच्छे मुनाफे की उम्मीद
Taro Root Farming: उत्तरप्रदेश के किसानो ने बताया की उन्होंने एक बीघा खेत में 4500 रुपए का 3 क्विंटल बीज बोया था। 3 माह की अरबी की खेती में उन्होंने लगभग 9000 रुपए खर्च किए थे।अब अरबी निकलनी शुरू हो गई है, एक बीघे में 50 क्विंटल अरवी की पैदावार हुई है।बाजार में अरबी 30 से 40 रुपए प्रति किलो बिक रही है, जिससे किसानों को अच्छे मुनाफे की उम्मीद जगी है। अरबी की उपज कुछ ही समय में प्राप्त हो जाती है जिससे आसानी से अन्य फसलों का काम भी किया जा सकता है और समय की बचत होती है।

Taro Root Farming: अरबी कंद वाली सब्ज़ी है, जो जम़ीन के अंदर आलू की तरह उगती है। इसे घोईया, कोचई आदि भी कहा जाता है। अरबी के कंद की सब्ज़ी बनाने के अलावा, इसके पत्तों से पकौड़े भी बनाए जाते हैं। अरबी गैस्ट्रिक के मरीज़ों के लिए फ़ायदेमंद मानी जाती है।
Taro Root Farming: अरबी के कंद में मुख्य रूप से स्टार्च होता है, जबकि पत्तियों में विटामिन ए, कैल्शियम, फॉस्फोरस और आयरन होता है। अरबी की खेती प्याज और आलू जैसी फसलों के साथ भी की जा सकती है। इससे किसानों को अधिक मुनाफ़ा होता है। अरबी की उन्नत किस्मों की खेती करके किसान अच्छी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं।
Taro Root Farming: व्हाइट गौरैया- अरबी की कई किस्मों में कंद और पत्तों को खाने के बाद खुजली होने लगती है, लेकिन इस किस्म में ऐसा नहीं होता। बुवाई के 180-190 दिन बाद अरबी की पैदावार होने लगती है। इसकी प्रति हेक्टेयर उपज क्षमता 170-190 क्विंटल है।
Taro Root Farming: अरबी की फसल ने कई किसानो की झोली पैसे से भर दी, कुछ ही समय में कमा सकते है लाखों
Taro Root Farming: पंचमुखी- अरबी की इस किस्म के पौधे में 5 मुख्य कंदिकाएं होती हैं। इसलिए इसे पंचमुखी कहा जाता है। रोपाई के 180-200 दिन बाद फसल तैयार हो जाती है। इस किस्म की पैदावार अन्य किस्मों से बहुत अधिक है। औसत उपज क्षमता 200-250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
Taro Root Farming: मुक्ताकेशी- यह किस्म कम समय में अधिक उपज के लिए उगाई जाती है। कंद लगाने के 160-170 दिन बाद ही फसल तैयार हो जाती है। इसकी औसत उपज क्षमता प्रति हेक्टेयर 200 क्विंटल है।
कैसे होती है बुवाई?
Taro Root Farming: अरबी को कंद के रुप में बोया जाता है। एक हेक्टेयर खेत में करीब 15-20 क्विंटल बीज की ज़रूरत होती है। कंद की बुवाई से पहले उन्हें बाविस्टीन या रिडोमिल एम जेड- 72 से उपचारित किया जाना ज़रूरी है। फिर कंद की रोपाई की जाती है। बुवाई दो तरीकों से की जा सकती है। पहला समतल भूमि में क्यारियां बनाकर और दूसरा खेत में मेड़ तैयार कर के। दोनों ही तरीकों में कंदों की बुवाई 5 सेंटीमीटर की गहराई में की जाती है।

Taro Root Farming: अरबी की फसल अगर बारिश के मौसम में लगाई जाती है तो अधिक सिंचाई की ज़रूरत नहीं पड़ती है। गर्मी के मौसम में समय-समय पर सिंचाई की जानी चाहिए और कुदरती तरीके से खरपतवार का नियंत्रण भी ज़रूरी है।
अतिरिक्त कमाई का साधन है अरबी
Taro Root Farming: किसान अन्य कई फसलों का उत्पादन करते है। जिसमे अरबी की फसल उनके लिए कम समय में कमाई का अतिरिक्त साधन है। अरबी की किस्मों में पंचमुखी, सफेद गौरिया, सहस्रमुखी, सी-9, सलेक्शन प्रमुख हैं।अरबी की फसल कम लागत में बनकर तैयार हो जाती है और इसके साथ अन्य और फसलों का भी उत्पादन किया जा सकता है ,उत्तरप्रदेश में फिलहाल के समय में अरबी काफी अच्छा स्रोत है।