Metti ke bartan: चाहे खाने का हो या विरासत को सहेजने का। ऐसी ही विरासत में शामिल मुगल शासन की क्राकरी और ब्रिटिश हुकूमत के फर्नीचर रूही जुबैरी ने संभाल रखे हैं। वे एएमयू के पहले वीसी डा. सर जियाउद्दीन अहमद की पौत्र वधु हैं। मैरिस रोड स्थित जिया कंपाउंड का बंगला व फर्नीचर ब्रिटिश हुकूमत से ही है। मुगल शासन की कई वस्तुएं इस बंगला की शान बढ़ा रही हैं। डा. सर जियाउद्दनी अहमद भारतीय संविधान सभा के सदस्य थे।
इसके चलते उनके पास संसद में पढ़े गए भाषण की प्रतियां थीं। वे जुबैरी के पास मौजूद हैं। संविधान निर्माता डा. भीमराव आंबेडकर व मोती लाल नेहरु के साथ की तस्वीरों को भी संजो रखा है। डा. अहमद के नाम से एएमयू डेंटल कालेज व हाल है। इसके पुराने फोटो, प्रमाण पत्र और उनकी छड़ी, शेरवानी व टोपी भी आज भी घर पर मिल जाएंगी। रूही जुबैरी ने बताया है कि उनके पति अहमद जियाउद्दीन ने अपने दादा की विरासत में मिली सभी वस्तुओं को संभालकर रखा था। इसमें वर्ष1900 की डायनिंग भी है। कानर टेबल देश की आजादी से पहले के हैं। देश की आजादी से पहले की बरेली के हाफिज एंड संस के हाथों बनी लकड़ी की अलमारी आकर्षक है। यह 100 साल से भी पुरानी है।

चीजें संजोने के शौक से घर में ही बना लिया संग्रहालय
हाथरस। बच्चों को चीजों को संभालकर रखने की सीख माता-पिता देते हैं, यह सीख शैलेंद्र वाष्र्णेय सर्राफ के लिए प्रेरणा बन गई। चीजों को संवारने का ऐसा शौक उन्हें लगा कि घर में ही संग्रहालय बना दिया। उनके संग्रहालय में मुगल, ब्रिटिश काल के सिक्कों से लेकर घड़ी, संदूक, लैंप, मुद्रा, डाक टिकट समेत सैकड़ों दुर्लभ चीजें मौजूद हैं।
हाथरस में घंटाघर के पास गली सीकनापान निवासी 58 वर्षीय शैलेंद्र वाष्र्णेय के घर में सर्राफे का काम पुराना है। इनकी दुकान पर नए-पुराने सिक्के, चांदी के सिक्के, गिन्नी आदि आते थे तो उन्हें संजोना शुरू कर दिया। अब इनके पास मुगलकाल, ब्रिटिश काल, आजाद भारत की मुद्राएं और सिक्के मौजूद हैं। आजादी से लेकर अब तक के सभी तरह के भारतीय नोट भी उनके संग्राहलय में हैं। दुर्लभ डाक टिकट का कलेक्शन भी उन्होंने रखा है। उनके संग्रहालय में कई दुर्लभर वस्तुएं भी हैं। जापान मेड मैजिक बाक्स में कई लाक लगे हुए हैं। इसके खुलते ही घंटी की आवाज आती है। शैलेंद्र बताते हैं कि यह बाक्स करीब 100 वर्ष पुराना है और बेहद मजबूत है। पुराने समय के लैंप, पीतल की दबात भी देखने लायक है। ब्रिटिशकाल की इत्र का बाक्स जिस पर सोने की कड़ाई है, ग्रामोफोन, डिनर सेट, बर्तन आदि भी हैं। प्राचीन काल का तांबे का बड़ा बर्तन है, जिसे धूप में रखकर पानी गर्म किया जाता था।
कृषि क्षेत्र में क्रांति की गवाही देते हैं पुराने कृषि यंत्र
अलीगढ़। कई लोग ऐसे हैं जो दशकों पुरानी चीजों को धरोहर की तरह संजोए हुए हैं। इनमें गांव औरंगाबाद (बरौठा) के प्रवीण कुमार चौहान ‘सुन्ना’ भी हैं। इनके पास पुरखों की धरोहर सुरक्षित है। इनके परदादा स्वर्गीय ठा. रणधीर सिंह के जमाने के कृषि उपकरण हैं। ये बात की गवाही देेते हैं कि कृषि क्षेत्र में कितनी क्रांति आई है। प्रवीण के पास 1942 का इंग्लैंड निर्मित मैसी फर्गुसन ट्रैक्टर के अलावा युगोस्लाविया निर्मित 1952 का आइएमटी-555 ट्रैक्टर मौजूद है। 1950 का निर्मित प्लाउ हल है। इसमें साइकिल की तरह हैंडल लगा हुआ है। इसे पहले हाथ से पकड़कर चलाया जाता था। 1960 में स्थापित गन्ना का क्रशर भी है। इसमें गन्ने का जूस निकालकर गुड़ बनाया जाता था। 1950 का जर्मन निर्मित ट्रिलर भी घर में शान से खड़ा है। उन्होंने इन उपकरणों पर जंग लगने के बावजूद इधर-उधर नहीं किया है। वे अपने पूर्वजों की इस निशानी को रखे हुए हैं।
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