Pandit Dhirendra Shastri: जबलपुर के पनागर में हो रही श्रीमद भागवत कथा में कहा-सरकार ने ऐसे विवाह को मान्यता देकर हद कर दी
Pandit Dhirendra Shastri : जबलपुर, नईदुनिया प्रतिनिधि। आजकल उलटा जमाना आ गया है। हनुमान जी बचाएं ऐसे जमाना से। लड़का-लड़का और लड़की-लड़की शादी कर रहे हैं। सरकार ने भी ऐसे विवाह को मान्यता देकर हद कर दी है। अब तो कार्ड भी पढ़ना पड़ता है कि लड़का की शादी लड़का से हो रही है कि लड़की से। यह विवादित बयान बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर पं. धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने पनागर में चल रही श्रीमद भागवत कथा के दूसरे दिन व्यास पीठ से दिया है। यह विवादित बयान देकर फिर चर्चा में आ गए हैं।

गोकर्ण-धुंधकारी कथा प्रसंग समझाते हुए महाराजश्री ने कहा कि भगवान का भक्त बनने के बाद कोई कभी रोता नहीं है वरन सदा मुस्कुराता रहता है। उन्होंने प्रतिप्रश्न किया कभी महात्माओं को रोते देखा है? महात्मा यदि रोते नहीं हैं, तो इसका कारण सिर्फ यही है कि वे भगवान के प्रेम में डूबकर सदा मुस्कुराते रहते हैं।
Pandit Dhirendra Shastri धुंधकारी कथा ये बताती है कि भागवत कथा के श्रवण से जीवन की बाधाएं ही दूर नहीं होतीं, प्रेत बाधा से भी मुक्ति मिल जाती है। भागवत कथा जिंदा व्यक्ति को तो मुक्ति करती ही है, मरने के बाद उसके नाम पर कोई कथा सुनवा दे, तो भी दिवंगत आत्मा को मुक्ति मिल जाती है। उन्होंने कहा कि धुंधकारी ने मुक्त होकर भागवत कथा की महिमा गाई।
जबलपुर संस्कारों की नगरी
Pandit Dhirendra Shastri ने कहा कि जबलपुर ऋषि जाबाली के नाम पर प्रसिद्ध है। जबलपुर संस्कारों की राजधानी है। यहां रह कर भी संस्कार न निखरे तो ये दुर्भाग्य है। निखरने का आशय समझाते हुए उन्होंने कहा कि तन को निखारोगे तो काम से भरोगे, मन को निखारोगे तो राम से भरोगे। तन के लिए साबुन की जरूरत पड़ती है, पर मन को निखारने के लिए कथा की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि जबलपुर अब इतिहास रच रहा है। यहां का हर व्यक्ति
ज्ञान और भक्ति में महीन अंतर
ज्ञान और भक्ति में अंतर स्पष्ट करते हुए पं. धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने कहा कि ज्ञान लघु है, भक्ति विराट। ज्ञान मां है, ज्ञान पुत्र। ज्ञान के होने से स्व का अभिमान बना रहता। अभिमान में ‘मैं’ होता है और भक्ति में तू। सब कुछ तुमसे, सब कुछ तेरा। लेकिन जहां न ज्ञान होता न भक्ति वहां तू-मैं, तू-मैं होता रहता हैं।

कौन है ठाकुर जी का दीवाना
Pandit Dhirendra Shastri ने कहा कि पनागर के पागलों कभी खुद से पूछो कि मैं ठाकुर जी का दीवाना हूं या नहीं हूं। हृदय में प्रेम होगा तो हृदय गाएगा कि तेरी बांकी अदा ने ओ सांवरे हमें पागल दीवाना बना दिया। उन्होंने बताया कि कथा उससे सुननी चाहिए जो विरक्त हो, वैष्णव हो, ब्राम्हण हो, भगवान का उपासक हो, वीर हो गंभीर हो लालची न हो। ऐसे वक्ता से भगवान की कथा सुनने से ही भागवत का फल प्राप्त होता है।