Madhya Pradesh भारत में अनोखे और बेसिमाल मंदिरों की कोई गिनती नहीं है. यहां हर एक मंदिर का अपना अलग महत्व और मान्यताएं भी हैं. मध्य प्रदेश में भी ऐसे कई रहस्यमयी मंदिर हैं. आज हम मध्यप्रदेश के कुछ ऐसे ही खास मंदिरों के बारें में बता रहे हैं जो अद्भुत हैं और इनकी रहस्यमयी कहानियां प्रचलित हैं.
Madhya Pradesh कालों के काल महाकाल का मंदिर
उज्जैन को लेकर तमाम रहस्य आज भी मौजूद हैं. ऐसा माना जाता है कि उज्जैन आकाश और धरती का केंद्र है. यहां के एक ही राजा हैं और वो हैं कालों के काल महाकाल. यहां अनेक मंत्र-जाप और अनुष्ठान होते हैं. तंत्र क्रियाओं के लिए भी ये जगह जानी जाती है. मान्यताओं के मुताबिक राजा भोज के काल से ही यहां कोई राजा नहीं रुकता है. यहां तक कि बड़े राजनीतिक पद पर बैठे जनप्रतिनिधि भी रात में यहां नहीं रुकते. इसका राज कोई नहीं जानता, लेकिन ऐसी घटनाएं राजनीतिज्ञों और पुराने राजपरिवार से जुड़े लोगों को विवश करती हैं कि वो उज्जैन की सीमा में रात को बिल्कुल भी न रुकें. इतना ही उज्जैन में ही भैरव बाबा का मंदिर है. इनको मदिरा पान भक्त कराते हैं.
मतंगेश्वर महादेव नामक ये शिव मंदिर खजुराहो में है. कहा जाता है कि ये दुनिया का एकमात्र ऐसा शिवलिंग है जो लगातार बढ़ता जा रहा है. यही नहीं इस मंदिर के शिवलिंग की ख़ासियत है कि ये जितना धरती के ऊपर है उतना ही ये जमीन में धंसा हुआ है. इसके साथ ही शिवलिंग की ऊंचाई हर साल एक इंच बढ़ती जा रही है. कहते हैं इंसान की तरह शिवलिंग का आकार भी बढ़ता चला जा रहा है, जिस वजह से इसे जीवित शिवलिंग कहा जाता है. इसके पीछे के रहस्य को आज तक कोई वैज्ञानिक भी नहीं समझ पाया है. आपको बता दें कि शिवलिंग की ऊंचाई 9 फ़ीट है.
यहां जलता है पानी से दीया
आप जब भी मंदिरों में जाते होंगे तो घी या तेल का दिया जरूर जलाते होंगे. मध्य प्रदेश के गड़ियाघाट माताजी का माताजी का मंदिर ऐसा है जहां दिया घी या तेल से नहीं जलता है बल्कि पानी से जलता है. यह मंदिर काली सिंध नदी के किनारे आगर-मालवा के नलखेड़ा गांव से करीब 15 किलोमीटर गाड़िया गांव में है. मंदिर में पिछले 5 सालों से घी तेल के बदले पानी से दीपक जलाए जा रहे हैं. पुजारी बताते हैं कि, पहले तेल का दीपक जला करता था,
लेकिन करीब पांच साल पहले माता ने सपने में अपना दर्शन देकर पानी से दीपक जलाने के लिए कहा. जिसके बाद सुबह उठकर पास बह रही कालीसिंध नदी से पानी भरा और उसे दीए में डाला. जैसे ज्योत जलाई, दीपक जलने लगा. तभी से मंदिर का दिया कालीसिंध नदी के पानी से जलाया जाता है. इतना ही नहीं जब दीपक में पानी डाला जाता है, तो वह चिपचिपा हो जाता और दीपक जल उठता है. दीपक को लेकर पुजारी ने बताया कि पानी से जलने वाला ये दीपक बारिश के मौसम में नहीं जलता है. क्योंकि बारिश के मौसम में कालीसिंध नदी का जलस्तर लेवल बढ़ने की वजह मंदिर पानी में डूब जाता है, जिससे यहां पूजा उस समय नहीं हो पाती. ये दिया फिर सितंबर-अक्टूबर में आने वाली शारदीय नवरात्रि के पहले दिन दोबारा ज्योत जला दी जाती है, फिर ये दिया अगले साल बारीश के मौसम तक जलती रहती है.
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