सोयाबीन बुवाई से पहले करें यह 5 जरूरी काम पैदावार होगी 2 गुना …
रबी सीजन का अंत हो चुका है। किसान साथी खरीफ सीजन की तैयारी में अभी से लग चुके हैं। हालांकि खरीफ की बुवाई को अभी समय है किंतु हम इस लेख के माध्यम से बताने वाले हैं कि किसान साथी भूलकर भी सोयाबीन की बंपर पैदावार के लिए यह गलतियां ना करें।
Five mistakes hindering good soybean production– मध्य प्रदेश राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ में खरीफ सीजन के दौरान सोयाबीन की फसल प्रमुखता से की जाती है। यदि सोयाबीन उत्पादकता कमी के कारणों पर प्रकाश डालेंगे तो हम पायेंगे कि सोयाबीन की खेती वर्तमान में विभिन्न प्रकार की विषम परिस्थितियों से गुजर रही है अर्थात दिन प्रतिदिन इसकी खेती में विभिन्न व्यय में अत्याधिक वृद्धि परिलक्षित हो रही है। जिससे कृषकों को आर्थिक दृष्टिकोण से ज्यादा लाभ प्राप्त नहीं हो रहा है। सोयाबीन की पैदावार को कई परिस्थितियां प्रभावित करती है, इन्हीं में से सोयाबीन की बंपर उत्पादन में रुकावट डालने वाली पांच प्रमुख गलतियों के विषय में जानिए।

इस तरह करें सोयाबीन की उन्नत खेती
- खेत की तैयारी
- उन्नत किस्में
- बीजोपचार
- बुआई की विधि
- खाद एवं उर्वरक
- फसल चक्र
- खरपतवार नियंत्रण
- रोग एवं कीट प्रबंधन
यह है प्रमुख 5 गलतियां- Five mistakes hindering good soybean production :-
1. खेत की तैयारी व मिट्टी परीक्षण
रबी फसलों की कटाई के पश्चात अक्सर किसान खेत की हकाई जुताई मैं व्यस्त हो जाते हैं किंतु बहुत ही महत्वपूर्ण रूप से मानी जाने वाली मिट्टी परीक्षण नहीं करवाते जिसके कारण खरीफ की फसलों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है क्योंकि मिट्टी परीक्षण नहीं होने की दशा में जमीन को संतुलित उर्वरक नहीं मिल पाता।
संतुलित उर्वरक प्रबंधन एवं मृदा स्वास्थ्य हेतु मिट्टी का मुख्य तत्व जैसे नत्रजन, फासफोरस, पोटाश, द्वितियक पोषक तत्व जैसे सल्फर, केल्शियम, मेगनेशियम एवं सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे जस्ता, तांबा, लोहा, मेगनीज़, मोलिब्डिनम, बोराॅन साथ ही पी.एच., ई.सी. एवं कार्बनिक द्रव्य का परीक्षण करायें।
2. ग्रीष्मकालीन जुताई
रबी फसलों की कटाई के बाद किसान क्षेत्र को यूं ही छोड़ देते हैं। ऐसे में ग्रीष्मकालीन धूप एवं गर्म हवाएं जमीन के अंदर तक नहीं पहुंच पाती जिसके कारण मृदा में मौजूद कई विषाणु जनित कीटाणु जीवित रह जाते हैं, जो खरीफ फसलों के लिए हानिकारक साबित होते हैं। इसलिए रवि रबी सीजन के तत्काल पश्चात खेतों की हकाई जुताई आवश्यक रूप से करना चाहिए। इसमें कभी भूल ना करें।
खाली खेतों की ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से माह मार्च से 15 मई तक 9 से 12 इंच गहराई तक करें। मृदा के भौतिक गुणों में सुधार होगा, जैसे मृदा में वातायन, पानी सोखने एवं जल धारण शक्ति, मृदा भुरभुरापन, भूमि संरचना मैं सुधार होगा और इससे खरपतवार नियंत्रण में सहायता प्राप्त होने के साथ-साथ कीड़े मकोड़े तथा बिमारियों के नियंत्रण में सहायक होता है।
3. संतुलित उर्वरक प्रबंधन को न भूलें
खरीफ फसलों के लिए संतुलित उर्वरक प्रबंधन अति आवश्यक है उर्वरक प्रबंधन नहीं होने की दशा में खर्च भी अनियमित रहता है वहीं पैदावार भी प्रभावित होती है इसलिए किसान साथी पहले से ही उर्वरक प्रबंधन पर ध्यान दें।
उवर्रक प्रबंधन के अंतर्गत रसायनिक उर्वरकों का उपयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर ही किया जाना सर्वथा उचित होता है। रसायनिक उर्वरकों के साथ नाडेप खाद, गोबर खाद, कार्बनिक संसाधनों का अधिकतम (10-20 टन/हे.) या वर्मी कम्पोस्ट 5 टन/हे. उपयोग करें।
संतुलित रसायनिक उर्वरक प्रबंधन के अन्र्तगत संतुलित मात्रा 20:60 – 80:40:20 (नत्रजन: स्फुर: पोटाश: सल्फर) का उपयोग करें।
नत्रजन की पूर्ति हेतु आवश्यकता अनुरूप 50 किलोग्राम यूरिया का उपयोग अंकुरण पश्चात 7 दिन से डोरे के साथ डाले।
अनुशंसित खाद एवं उर्वरक की मात्रा के साथ जिंक सल्फेट 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर मिट्टी परीक्षण के अनुसार डालें।
गंधक युक्त उर्वरक (सिंगल सुपर फास्फेट) का उपयोग अधिक लाभकारी होगा। सुपर फास्फेट उपयोग न कर पाने की दशा में जिप्सम का उपयोग 2.50 क्वि. प्रति हैक्टर की दर से करना लाभकारी है। इसके साथ ही अन्य गंधक युक्त उर्वरकों का उपयोग किया जा सकता है।
4. बीज चयन
अपने क्षेत्र मिट्टी के अनुसार चिन्हित अनुशंसित बीजों की प्रमुख उन्नतशील प्रजातियां का ही चयन करें।
सोयाबीन की प्रमुख उन्नतशील प्रजातियां :-
जे. एस-335 अवधि मध्यम, 95-100 दिन उपज 25-30 क्विंटल/हैक्टेयर
जे.एस. 93-05 अवधि अगेती,90-95 दिन उपज 20-25 क्विंटल/हैक्टेयर
जे. एस. 95-60 अवधि अगेती, 80-85 दिन उपज 20-25 क्विंटल/हैक्टेयर
जे.एस. 97-52 अवधि मध्यम,100-110 दिन, उपज 25-30 क्विंटल/हैक्टेयर
जे.एस. 20-29 अवधि मध्यम, 90-95 दिन, उपज 25-30 क्विंटल/हैक्टेयर
जे.एस. 20-34, अवधि मध्यम, 87-88 दिन उपज 22-25 क्विंटल/हैक्टेयर
एन.आर.सी-7 अवधि मध्यम, 90-99 दिन, उपज 25-35 क्विंटल/हैक्टेयर
एन.आर.सी-12, अवधि मध्यम, 96-99 दिन, उपज 25-30 क्विंटल/हैक्टेयर
एन.आर.सी-86, अवधि मध्यम, 90-95 दिन, उपज 20-25 क्विंटल/हैक्टेयर
नोट :- बुवाई के पूर्व बीज की अंकुरण क्षमता (70%) अवश्य ज्ञात करें। 100 दानें तीन जगह लेकर गीली बोरी में रखकर औसत अंकुरण क्षमता का आकंलन करें ।
5. बीजोपचार, उर्वरक प्रबंधन एवं कीट-रोग प्रबंधन
सोयाबीन की अच्छी पैदावार के लिए भूमि के पूर्व बीज उपचार अति आवश्यक रूप से करना चाहिए इसके अलावा उर्वरक प्रबंधन एवं कीट रोग प्रबंधन के प्रति भी सजगता जरूरी है।
5. बीजोपचार, उर्वरक प्रबंधन एवं कीट-रोग प्रबंधन
सोयाबीन की अच्छी पैदावार के लिए भूमि के पूर्व बीज उपचार अति आवश्यक रूप से करना चाहिए इसके अलावा उर्वरक प्रबंधन एवं कीट रोग प्रबंधन के प्रति भी सजगता जरूरी है।
Five mistakes hindering good soybean production- बीज को थायरम कार्बेन्डाजिम (2:1) के 3 ग्राम मिश्रण, अथवा थायरम कार्बोक्सीन 2.5 ग्राम अथवा थायोमिथाक्सेम 78 ws 3 ग्राम अथवा ट्राईकोडर्मा विर्डी 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।
एकीकृत कीट नियंत्रण के उपाय अपनाएं जैसे नीम तेल व लाईट ट्रेप्स का उपयोग तथा प्रभावित एवं क्षतिग्रस्त पौधों को निकालकर खेत के बाहर मिट्टी में दबा दें। कीटनाशकों के छिड़काव हेतु 7-8 टंकी (15 लीटर प्रति टंकी) प्रति बीघा या 500 ली./हे. के मान से पानी का उपयोग करना अतिआवश्यक है।
फफूंदजनित गेरुआ रोग की रोकथाम के लिए रोग रोधी किस्में जैसे जे.एस. 20-29, एन.आर. सी 86 का प्रयोग करें।
रसायनिक नियंत्रण के अन्तर्गत हेक्साकोनाजोल या प्रोपीकोनाजोल 800 मि.ली. /हे. का छिड़काव करें।
चारकोल रोट रोग सहनशील किस्में जैसे जे.एस. 20-34 एवं जे.एस 20-29,, जे एस 97-52, एन.आर.सी. 86 का उपयोग करें। रसायनिक नियंत्रण के अन्तर्गत थायरम कार्बोक्सीन 2:1 में 3 ग्राम या ट्रायकोडर्मा विर्डी 5 ग्राम /किलो बीज के मान से उपचारित करें।
ऐन्थ्रेक्नोज व फली झुलसन रोग सहनशील किस्में जैसे एनआरसी 7 व 12 का उपयोग करें।
बीज को थायरम कार्बोक्सीन या केप्टान 3 ग्राम /कि.ग्रा. बीज के मान से उपचारित कर बुवाई करें।
रोग का लक्षण दिखाई देने पर जाइनेब या मेन्कोजेब 2 ग्रा./ली. का छिड़काव करें।
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