Health Tips: मोटा अनाज है सेहत का खजाना जानिए कैसे

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Health Tips : हमारे यहां सदियों से मोटे अनाज की खेती व खानपान की परंपरा रही है। मोटे अनाज के रूप में ज्वार, बाजरा, जौ, रागी (मडवा), मक्का, कांगनी शामिल है। इनके उत्पादन में पानी, उर्वरक आदि की अधिक आवश्यकता नहीं पड़ती, इसलिए इन्हें मोटा अनाज कहते हैं। इन्हें अधिक देखभाल की जरूरत भी नहीं रहती। कम उपजाऊ भूमि व बरसाती पानी की निर्भरता पर भी इन्हें आसानी से उगाया जा सकता है। इनमें कृत्रिम खाद (यूरिया व पेस्टिसाइड्स) नहीं डालने पड़ते हैं।
अब आपके दिमाग में एक सवाल चल रहा होगा कि मोटे अनाज को डाइट में शामिल कैसे करें तो हम आपको बताएंगे कि किन तरीकों से आप मोटा ना उसको अपने डाइट में महत्वपूर्ण हिस्सा बना सकते हैं और यह आपकी सेहत के लिए कितना फायदेमंद है

मोटे अनाज स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित हैं, क्योंकि इनसे शरीर में यूरिया, पेस्टिसाइड जैसे टॉक्सिन की मात्रा नहीं जाती। मोटे अनाज में पोषक तत्त्व और फाइबर प्रचुर मात्रा में मौजूद रहते हैं। ये पोषण के दृष्टिकोण से भी अधिक लाभदायक हैं। इनकी न्यूट्रिशन वैल्यू तालिका में समझाई गई है।
पोषक तत्त्वों की भरमार

जिंक, मैग्नीशियम, मैगनीज, फास्फोरस आदि माइक्रोन्यूट्रिएंट्स एवं एंटी-ऑक्सीडेंट्स अच्छी मात्रा में होते हैं। ये सभी तत्त्व शरीर के लिए आवश्यक है। मोटे अनाजों से इनकी पूर्ति हो जाती है।
इतने गुणों के साथ मोटे अनाज वर्तमान में होने वाले जीवनशैली से संबंधित रोगों से बचाव के लिए भी उपयोगी हैं। मोटापा, हृदय रोग, कॉलेस्ट्रोल बढऩा, मधुमेह जैसे रोग नहीं होते, क्योंकि मोटे अनाज का ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है और वसा की मात्रा शून्य या बहुत ही नगण्य होती है। कई अन्य बीमारियों से बचाव होता है।
हर मौसम में खा सकते हैं लेकिन इनका ध्यान रखें

मोटा अनाज हर मौसम में खा सकते। जौ और जई गर्मी में और ज्वार, मक्का बाजरा सर्दी में अधिक खाने से चाहिए। ज्वार, बाजरा और मक्का भी गर्मी में खाएं लेकिन साथ में हरी सब्जियां, घी मौसमी फलों की मात्रा बढ़ा दें ताकि इनका पाचन अच्छा हो। साथ में दही और छाछ भी अधिक लें। इनसे पोषिकता अधिक होती है।
यह मल्टीग्रेन आटे के रूप में बाजार में मिलता है। लेकिन कोशिश करें कि अपनी जरूरत के अनुसार इसको तैयार भी करवा सकते हैं। गर्मी के दिनों में इनमें रागी और कोदो भी मिलवा लें। इनकी प्रकृति गर्मी के अनुसार हो जाएगी।
गेंहू व धान की अपेक्षा इनमें आधा समय व आधा पानी लगता है। मोटे अनाज 70-100 दिन में तो गेहूं-चावल 120-150 दिन में तैयार होते हैं। मोटे अनाज को 350-500 मिमी तो गेहूं-चावल को 600-1,200 मिमी पानी की जरूरत होती है।
इसमें मौजूद में एंटीऑक्सीडेंट कैंसर से बचाव में सहायता करते हैं। इसमें मौजूद आयरन, एनीमिया के खतरे को कम करता है।
ज्वार की रोटी सीलिएक एलर्जी से बचाती है। इसमें अति आवश्यक विटामिन बी3 का एक प्रकार पाया जाता है, जिसे नियासिन कहते हैं।
नियासिन भोजन को ऊर्जा में रूपांतरित कर पूरे शरीर में पहुंचाता है। ज्वार में पाए जाने वाले दो प्रकार के खनिज, कैल्शियम और मैग्नीशियम हड्डियों के ऊतकों के समुचित विकास के महत्त्वपूर्ण घटक होते हैं, जो बढ़ती उम्र के साथ हड्डियों को मजबूत बनाने में सहायक होते हैं।

इसमें मौजूद फाइबर भूख को नियंत्रित रखने का काम करता है। इसके कारण आपके खाने की मात्रा कम हो जाती है और काफी समय तक भूख का अहसास नहीं होता है। इससे वजन कम करने में सहायता मिलती है।
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