अलीगंज के स्वास्तिक ज्योतिष केंद्र के ज्योतिषाचार्य एसएस नागपाल ने बताया कि हरछठ (हलषष्ठी) व्रत भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि का आरम्भ 16 अगस्त दिन

संतान की लंबी आयु के लिए महिलाएं बुधवार को हरछठ का व्रत रखेंगी। विधि-विधान से पूजन कर महिलाएं व्रत करेंगी।
अलीगंज के स्वास्तिक ज्योतिष केंद्र के ज्योतिषाचार्य एसएस नागपाल ने बताया कि हरछठ (हलषष्ठी) व्रत भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि का आरम्भ 16 अगस्त दिन मंगलवार की रात 08:17 से होगा। कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि का समापन 17 अगस्त की रात 08:24 पर होगा। यह पर्व भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष यह 17 अगस्त को है। धार्मिक मान्यता के अनुसार बलराम जी शेषनाग के अवतार थे । वह गदायुद्ध में विशेष प्रवीण थे। दुर्योधन इनका ही शिष्य था। इस दिन हल पूजन का विशेष महत्व है। इसे हल छठ, पिन्नी छठ या खमर छठ भी कहते हैं। ललई छठ भी कहते हैं
एसएस नागपाल ने बताया कि पूरब के जिलों में इसे ललई छठ भी कहा जाता है। हल षष्ठी व्रत महिलाएं अपने संतान के सुख और लंबी आयु के लिए रखती हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान हलधर उनके संतान को लंबी आयु प्रदान करते हैं।
इस दिन महिलाएं महुआ पेड़ की डाली का दातून, स्नान कर व्रत रखती हैं। इस दिन व्रती महिलाएं कोई अनाज नहीं खाती हैं। सामने एक चौकी या पाटे पर गौरी-गणेश, कलश रखकर हलषष्ठी देवी की मूर्ति की पूजा करते हैं। इस पूजन की सामग्री में पचहर चांउर (बिना हल जुते हुए जमीन से उगा हुआ धान का चावल), महुआ के पत्ते, धान की लाई, भैंस का दूध-दही व घी आदि रखते हैं। बच्चों के खिलौने जैसे-भौरा, बाटी आदि भी रखा जाता है।
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